बिखरे हुए लफ़्जों को आवाज़ मिल जाये ,
भटके हुए परिंदों को परवाज़ मिल जाये ।
खत्म कर शिकवे दिल से दिल मिलने दो,
सीने में दबा हुआ हर राज खुल जाये ।
जाहिर न करना अपना इश्क जमाने पर ,
हुस्न कहीं फिर से न नाराज़ हो जाये ।
राह ए वफ़ा में रखो फूँककर कदम ,
एक नये फ़साने का आगाज़ हो जाये ।
भूलकर भी उन खताओं को न दोहराना ,
खुशी फिर से तुम्हारी हमराज हो जाये ।
ठहरे हुए जज्बातों को लबों पर आने दो ,
बेपनाह मोहब्बत का उन्हें अंदाज हो जाये ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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