Monday, 20 May 2019

ग़ज़ल

बिखरे हुए लफ़्जों को आवाज़ मिल जाये ,
भटके हुए परिंदों को परवाज़ मिल जाये ।

खत्म कर शिकवे दिल से दिल मिलने दो,
सीने में दबा हुआ हर  राज  खुल जाये ।

जाहिर न करना अपना इश्क जमाने पर ,
हुस्न कहीं फिर से न नाराज़ हो जाये ।

राह ए वफ़ा में रखो फूँककर कदम ,
एक नये फ़साने का आगाज़ हो जाये ।

भूलकर भी उन खताओं को न दोहराना ,
खुशी फिर  से तुम्हारी  हमराज  हो जाये ।

ठहरे हुए जज्बातों को लबों पर आने दो ,
बेपनाह मोहब्बत का उन्हें अंदाज हो जाये ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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