Monday, 6 May 2019

ग़ज़ल

वो मेरे सामने बैठे रहे , शब भर बात चलती रही ।
चाँद  यूँ ही ढलता  रहा , चाँदनी बरसती रही ।

कली सी गुमसुम रही , गुलमोहर सी खिलती रही ।
हाथ न आई कभी , तितली सी खुशी उड़ती रही ।

नैनों में नीर भरता रहा , दिल में पीर पलती रही 
फिर ख्वाब मचलते रहे , उम्मीद थिरकती रही  ।

इश्क का रंग चढ़ता रहा ,  दीवानगी रँगती  रही ।
ज्यों ज्यों प्रीत लुटाते रहे , मेरी तिश्नगी बढ़ती रही ।

पत्तों पे शबनम झरते रहे ,फिजां में खुशबू घुलती रही ।
वो  मुझे देख मुस्कुराते रहे , शमा सी मैं पिघलती रही  ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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