वो मेरे सामने बैठे रहे , शब भर बात चलती रही ।
चाँद यूँ ही ढलता रहा , चाँदनी बरसती रही ।
कली सी गुमसुम रही , गुलमोहर सी खिलती रही ।
हाथ न आई कभी , तितली सी खुशी उड़ती रही ।
नैनों में नीर भरता रहा , दिल में पीर पलती रही
फिर ख्वाब मचलते रहे , उम्मीद थिरकती रही ।
इश्क का रंग चढ़ता रहा , दीवानगी रँगती रही ।
ज्यों ज्यों प्रीत लुटाते रहे , मेरी तिश्नगी बढ़ती रही ।
पत्तों पे शबनम झरते रहे ,फिजां में खुशबू घुलती रही ।
वो मुझे देख मुस्कुराते रहे , शमा सी मैं पिघलती रही ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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