Tuesday, 7 May 2019

जीवन के अनुभव ( संस्मरण )

कई बार जीवन के अनुभव हमें बहुमूल्य सीख दे जाते हैं   । वक्त बीतने के बाद हमें समझ आता है हमारे द्वारा लिया गया निर्णय सही था या गलत । आज से लगभग बीस वर्ष पहले की बात है जब मेरे ससुर द्वारा उनकी सम्पत्ति का बंटवारा किया गया । मेरे पति की पोस्टिंग शुरू से दल्ली राजहरा में रही तो हम बाहर ही रहे परन्तु प्रत्येक शनिवार हम घर ( दुर्ग ) जरूर आते थे ताकि परिवार से नजदीकियां बनी रहे । नौकरी करनेवालों के लिये छुट्टी का एक दिन कितना महत्वपूर्ण होता है फिर भी कभी मैंने घर आने से मना नहीं किया । कैसे भी हो
भागदौड़ करके हम आ ही जाते थे । कभी कोई त्यौहार भी बिना माता - पिता के नहीं मनाया । हमारी यही विचारधारा थी कि यदि हमने अपने बड़ों को महत्व नहीं दिया तो हमारे बच्चों को वो संस्कार कहाँ से प्राप्त होगा कि परिवार क्या होता है ।हमें खुशी है कि हम अपने बच्चों के मन में परिवार के महत्व का बीजारोपण करने में सफल हुए ।
      चूँकि मेरे सास - ससुर अपने बड़े बेटे के साथ रहते थे तो उन्होंने अपना पैतृक घर उन्हें ही देने का निर्णय किया यह बोलकर कि वे डॉक्टर हैं और उन्होंने शुरू से यहीं प्रैक्टिस किया है.. अगर घर का बंटवारा होगा तो नर्सिंग होम नहीं बन पायेगा । मेरे पति ने चुपचाप उनके फैसले को अपनी स्वीकृति दे दी परन्तु मुझे बहुत दुःख हुआ क्योंकि उस घर से इनकी भी बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं और जो भी हो बंटवारा दोनों बेटों में समान होना चाहिए । हमारे  पैतृक घर का मूल्य उस समय लाखों में था और हम तो कभी भी वैसा घर नहीं खरीद पाते । बदले में उन्होंने गाँव की चार एकड़ भूमि हमारे नाम की थी तब खेतों का उतना मूल्य  भी नहीं था । तब मुझे दुःखी देखकर मेरे पति ने मुझे समझाया कि वो सम्पत्ति पापा की अपनी बनाई हुई है वो जिसे देना चाहें दे सकते हैं.. हम बस रिश्तों को स्वीकृति दे रहे हैं क्योंकि अगर उनका निर्णय मानने से हम एतराज करेंगे तो सिर्फ सम्बन्ध खराब होंगे और कुछ नहीं । धन - सम्पत्ति कितने दिन काम आयेगी.. परिवार का महत्व सबसे बड़ा है , बड़ों का स्नेह व आशीर्वाद  हमारे साथ रहा तो हम कभी अकेले नहीं रहेंगे । हम दोनों कमाते हैं.. धीरे - धीरे अपना आशियाना बना ही लेंगे तुम चिंता मत करो । मैंने भी उनकी खुशी में अपनी खुशी देखी और  पापा पर कभी यह जाहिर नहीं किया कि उनके निर्णय से हमें कोई तकलीफ हुई है । वक्त बीतने के साथ यह महसूस हुआ कि हमारा निर्णय गलत नहीं था ..हमने चुप रहकर
परिवार की प्रतिष्ठा और सम्मान की रक्षा की और प्यार और एकता को बरकरार रखा । बच्चों को भी बुजुर्गों के महत्व व सम्मान का संस्कार मिला ..आज  हमारा परिवार खुशहाल और प्यार भरा है और मै अपने पति की समझदारी पर गर्व महसूस करती हूँ ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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