शादी के बाद दूसरे दिन सत्यनारायण की कथा - पूजा होती है । उसके बाद कंकन मौर छुड़ाया जाता है , पासे और सिक्का ढूँढने वाले कुछ खेल खिलाये जाते हैं ताकि आने वाली नई दुल्हन नये माहौल में सहज हो सके । इस दिन एक और परम्परा का निर्वहन किया जाता है जो मुझे बहुत प्यारा लगता है सास अपने हाथों से अपनी बहू को दूध भात खिलाती है जो उन दोनों के बीच सम्बन्धों की एक मीठी शुरुआत होती है । सास अपनी बहू का स्वागत खुले मन से करती है और यह अपेक्षा रखती है कि बहू उस घर में रिश्तों में अपने प्यार की मिठास भर दे । अपने प्यारे बेटे के लिए वह खूब ढूंढकर एक प्यारी सी दुल्हन लाती है और उसे अपना बेटा सौप देती है । अब तक मैं जो देखभाल अपने बेटे की करती आई हूँ अब तुम करना , बस यही उम्मीद वह अपनी बहू से करती है परंतु बाद में यही रिश्ता इतना कडुवाहट भरा क्यों हो जाता है । जब भी मैं किसी सास - बहू के बीच सम्बन्ध बिगड़ते देखती हूँ तो शादी के वक्त खुशी से दमकता माँ का चेहरा याद आता है ..स्वाभाविक है इस दिन लिए तो नहीं । इन सबके बीच सबसे अधिक तकलीफ होती है बेटे को । माँ और पत्नी के बीच उसे ही सामंजस्य बिठाना पड़ता है । बेटा माँ से जुड़ा होता है उसे नाराज नहीं कर सकता और पत्नी अपना घर , रिश्ते छोड़कर आई है तो उसकी बातों को मान देना भी आवश्यक है ।
दरअसल माँ और पत्नी को ऐसी नौबत ही नहीं आने देना चाहिए कि बेटे के आगे सिर्फ एक ही राह रह जाये या उसे कोई दुविधा हो । बहू को माँ का किसी भी प्रकार अनादर नहीं करना चाहिए क्योंकि माँ तो माँ है , उससे बढ़कर कोई नहीं हो सकता । माँ से कैसी प्रतियोगिता ? एक बेटे के लिए माँ हमेशा पत्नी से ऊपर ही रहेगी और यह बात पत्नी को समझना ही चाहिए अगर वह नहीं समझती तो स्वयं माँ बनने के बाद समझ जाएगी । मेरे पति कई बार बोलते हैं यह चीज माँ तुमसे अच्छा बनाती है तो मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगता बल्कि मैं भी उनसे सहमत हो जाती हूँ । वो जो कहते हैं मैं उनका समर्थन करती हूँ क्योंकि एक बेटे के जीवन में माँ का स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है । कई बार ये मुझे उकसाने के लिए जान - बूझकर माँ के हाथों की तारीफ करते हैं तो भी मैं नहीं चिढ़ती क्योंकि माँ की मैं भी प्रशंसक हूँ ..उनसे भी बड़ी वाली । मुझे भी उनसे उतना ही प्यार है जितना उन्हें । मेरे मन में उनके प्रति कहीं अधिक आदर है क्योंकि उन्होंने मुझे इस घर में अपनेपन का एहसास कराया ...एक नये माहौल में सामंजस्य स्थापित करने में सहयोग दिया..मेरी गृहस्थी में आने वाली समस्याओं का समाधान किया । बच्चों को पालने में , उनका ध्यान रखने में अपना पूरा सहयोग दिया । जब - जब हमें आवश्यकता महसूस हुई..बच्चे बीमार पड़े ,मैं बेडरेस्ट पर थी या पतिदेव को बाहर दौरे पर जाना हो वह हमारे पास रहती थी । जन्म देने वाली माँ पालन - पोषण करती है , शिक्षा और संस्कार देती है, बच्चे को संघर्ष करना सिखाती है परंतु विवाह के पश्चात सासु माँ आगे की कमान संभाल लेती है और गृहस्थ जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करती है । एक लड़की के जीवन में दोनों माँ की भूमिका महत्वपूर्ण है और उसे यह बात निर्विरोध मानना चाहिए । दोनों को सम्मान देना व प्यार करना चाहिए क्योंकि मेरी हो या उनकी माँ तो माँ है । मातृ दिवस दोनों माँ के लिए है , आज के दिन दोनों माँ को धन्यवाद देना चाहिए ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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