जिंदगी कब तक मुझे रुलायेगी ,
दौड़ में जीतने देगी या हरायेगी ।
होठों पर ठहर गये कई जज्बात ,
खुलेगी या बात दबी रह जायेगी ।
सीने में मचल रहे कई अरमान ,
पूरे होंगे या दफ्न कर दी जायेगी ।
दुनियावी रस्मों से मात खाई देह ,
तूफानों के वार से थरथरायेगी ।
नेह के माधुर्य को तरसती जुबां ,
खामोश रहेगी या गुनगुनायेगी ।
चलती रही सदा अस्तित्व की जंग ,
खुद को जीतकर ही मुस्कुरायेगी ।
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