Thursday, 16 May 2019

ज़िंदगी...

जिंदगी कब तक मुझे रुलायेगी ,
दौड़ में जीतने देगी या हरायेगी ।

होठों पर ठहर गये  कई जज्बात ,
 खुलेगी या बात दबी रह जायेगी ।

सीने में मचल रहे कई अरमान ,
पूरे होंगे या दफ्न कर दी जायेगी ।

दुनियावी रस्मों से मात खाई देह ,
तूफानों के वार  से थरथरायेगी ।

नेह के माधुर्य को तरसती जुबां ,
खामोश रहेगी या गुनगुनायेगी ।

चलती रही सदा अस्तित्व की जंग ,
खुद को जीतकर ही मुस्कुरायेगी ।

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