राज खोल देती हैं दिल के ,
कुछ अनकहा कह जाती हैं ..
तुम्हारी आँखें ।
कभी खुशी कभी गम में ,
अश्क बन ढल जाती हैं ..
तुम्हारी आँखें ।
दिल में कई भाव जगाकर ,
खामोश रह जाती हैं ...
तुम्हारी आँखें ।
मुस्कुराते हुए ,
कई दर्द सह जाती हैं...
तुम्हारी आँखें ।
महसूस कर पर पीड़ा ,
अक्सर नम हो जाती हैं..
तुम्हारी आँखें ।
उतर जाती गहराइयों में ,
मन की थाह ले पाती हैं...
तुम्हारी आँखें ।
चुरा लेती हैं दिल कई ,
अपने साथ ले जाती हैं ...
तुम्हारी आँखें ।
मीन सी चंचल ,
कहीं टिक नहीं पाती हैं..
तुम्हारी आँखें ।
पलकों के चिलमन से झाँक,
दिल में उतर जाती हैं..
तुम्हारी आँखें ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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