उस दिन मैं जनगणना के लिए मैत्री कुंज रिसाली में एक घर में बैठे जानकारी भर रही थी कि मेरे बेटे का फोन आया कि मम्मी घर के अंदर एक बड़ा सा साँप आया है । तब वह दस वर्ष का रहा होगा...मैं डर के मारे थर - थर काँपने लगी..माँ को अपनी जान से अधिक अपने बच्चे की जान की फिक्र होती है । मैने उसे रसोई घर का दरवाजा बंद करके दूसरे कमरे में बिस्तर पर बैठने की हिदायत दी और तुरंत वहाँ से निकल गई । मेरे घर से मैत्री कुंज लगभग दस या बारह किलोमीटर की दूरी पर होगा पर उस दिन मुझे वह दूरी बहुत अधिक लग रही थी.. पूरे रास्ते मन में गलत ख्याल आ रहे थे । जैसे - तैसे घर पहुँची तो देखा कि बहादुर रसोई के दरवाजे के नीचे एक चादर को ठूंसे उसके सामने कुर्सी पर पहरा देते बैठे हैं और उसके हाथ में एक डंडा है मानो साँप अंदर की ओर आता तो वह उसे मार ही देता । उसकी
ऐसी स्थिति देखकर मेरा डर उड़न छू हो गया और मैं हँस पड़ी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Tuesday, 21 May 2019
डर ( संस्मरण )
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