काफ़िया - आने
रदीफ़ - लगे हैं
तसव्वुर में वो ऐसे छाने लगे हैं ,
आईना देख हम मुस्कुराने लगे हैं ।
देखने लगे अपनी आँखों में उनको ,
बेवक्त बेसबब गुनगुनाने लगे हैं ।
ख्वाबों में थी कल तक जिनकी आमद ,
निगाहों में वो झिलमिलाने लगे हैं ।
मुनव्वर हुई उनकी मुस्कान से महफ़िल,
शमा की तरह हम थरथराने लगे हैं ।
दीद हो गई उनके रुख- ए - रौशन की ,
पंछियों की तरह चहचहाने लगे हैं ।
आँखों की नमी सी थम गई थी हँसी ,
बातों बातों में खिलखिलाने लगे हैं ।
राह- ए - वफ़ा में चलना 'दीक्षा ' संभलकर ,
तूफ़ानों में वो डगमगाने लगे हैं ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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