जो अच्छा लगे उसे रख लो ,
स्वाद एक बार तो चख लो ।
चयन का अवसर मिलेगा तुम्हें _
पर एक बार तो परख लो ।।
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माँ कुछ भी कर जाती परिवार के लिए ,
दुःख - दर्द सह जाती सुसंस्कार के लिए ।
अपने सुख के लिए कभी न बोलेगी वह_
पर लड़ जाती बच्चे के अधिकार के लिए ।।
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स्मरण कर तुम्हें सजल हुए नयन हैं ,
भावों की अंजुरी में श्रद्धा के सुमन हैं ।
सुख देती है माँ तेरे आँचल की छांव_
स्नेहाशीष तेरा विस्तृत गगन है ।।
बारम्बार करता मन तुझे नमन है ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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