महंगाई की धूप में , सूखी ख्वाहिशों की डाली ।
सीमित आमदनी , हो गई खर्चों से जेबें खाली ।।
मुक्तक सृजन - 71
विषय - आँचल
तिथि - 17 मई 2019
वार - शुक्रवार
काँटों को चुनकर गुलिस्ताँ बन गई ,
कभी धरती कभी आसमां बन गई ।
भला पत्थरों की मुझे फिक्र क्यों हो _
मेरी माँ का आँचल कहकशाँ बन गई ।
सूरज #
दिन भर का थका हुआ ,
काम अपना सब छोड़ ।
दूर क्षितिज में सो जाता ,
रात की काली चादर ओढ़ ।
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