दुनिया की भीड़ में ।
अब तन्हाई है तो ,
दिल महफ़िल चाहता है ।
दोस्त साथ थे तो ,
एहसास न हुआ उनके होने का ।
अब नहीं हैं साथ तो ,
डर लगता है उन्हें खोने का ।
हँसी न आती थी ,
उनकी बकवास सी बातों पर ।
अब उन्हीं बेकार बातों पर ,
खुलकर हँसना चाहता है ।।
अवकाश ढूँढता था ,
उस व्यस्त जिंदगी में ।
अपनी रूचियों के लिए ,
कुछ पल चुराने में ।
अब मन फिर उसी
व्यस्त दिनचर्या में
दौड़ जाना चाहता है ।।
अभ्यास नहीं है ना ,
सिर्फ अपने बारे में सोचने का ।
घर की जिम्मेदारियां निभाने के बाद ,
इतना आराम करने का ।
जिंदगी की भागदौड़ में
थककर चूर होना चाहता है ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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