मानव ने अपने घर की बालकनी से देखा दो अधनङ्गे बच्चे कचरे के डिब्बे में कुछ ढूंढते और मुँह में डालते जाते । यह सब देखकर मानव का दिल रो दिया ।ओह ! भूख न गंदगी देखती है और न जगह , वह दौड़कर नीचे आया और उन दोनों को अपने घर लेकर आया । उन्हें हाथ धोने के लिए पानी दिया और रसोई में खाने की चीजें देखने लगा । मम्मी उसके लिए खाना बनाकर ऑफिस गई थी , उसने पूरा खाना एक थैली में रखकर उन्हें दे दिया । रोटी में सब्जी लगाकर वे तुरंत दो - दो रोटी चट कर गए । मानव उन्हें खाते देखकर स्वयं तृप्त हो रहा था । शायद ऐसा सन्तोष उसे पेट भरने पर भी नहीं होता जितना आज खाली पेट महसूस हो रहा था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment