विश्वास और समर्पण माँगती है ,
स्त्री सिर्फ खुशियाँ बाँटती है ।
स्नेह से पूरित हो घर - आँगन _
जीना सदा सुहागन चाहती है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
एक दाँव है जिंदगी आजमाते रहिए ,
धुन एक प्यारा सा गुनगुनाते रहिए ।
आसान हो जायेगा जीना यहाँ पर_
मुश्किल वक्त में भी मुस्कुराते रहिए ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment