कोयल कूके जब अमुवा पर ,
मन-भौंरा इठलाता है ।
हृदवीना की मीठी धुन सुन ,
तन - मन झूमा जाता है ।।
महका - महका सारा उपवन ,
यौवन बहका जाता है ।
वासंती बयार की धुन पर ,
मौसम जब बौराता है ।।
क्रीड़ा करती चपल चाँदनी ,
गगन धवल हो जाता है ।
बादल के पर्दे के पीछे ,
चाँद छुपा मुस्काता है ।।
कल - कल करता झरने का जल ,
जीवन - राग सुनाता है ।
रश्मिरथी के मृदुल छुअन से ,
हृदय -पटल खिल जाता है ।।
डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment