Friday, 29 May 2020

मजदूर

जीता है वर्तमान में सुखद भविष्य के सपने सजाता है ।
मजदूर है वह दुनिया को तरक्की की राह दिखाता है ।।

जूझता वह जीवन भर रोटी , कपड़ा , मकान के लिए ।
उसका खून - पसीना हरदम दूसरों के काम आता है ।।

बाँध देता नदियों को  , निर्मित करता बड़े - बड़े  पुल  ।
टाट का उसका झोपड़ा पहली बारिश में ढह जाता है ।।

खोदकर धरती को वह निकाल लाता कोयला , हीरा  ।
भूख , बेबसी, अभावों के अंधेरे से निकल नहीं पाता है ।।

उसके लिए नहीं हैं ये  सारे सुख - साधन , सुविधाएं ।
वह हवाई जहाज , कार ,आलीशान महल बनाता है ।।

बुनता है वह रंग - बिरंगे रेशमी  धागों के ताने- बाने ।
चीथड़ों में पलते  बच्चे , पैबन्दों में जीवन बिताता है ।।

हाहाकार मच जायेगा दुनिया में उसके न होने पर ।
पर उसकी दयनीय दशा पर  आँसू कौन बहाता है ।।

ईमानदारी उसके सीने में परिश्रम उसके माथे पर ।
थक जाता  पर कभी न मेहनत से  जी चुराता है ।।

मजदूर के खुरदुरे हाथों में केवल हैं  कर्म की  लकीरें  ।
काँटों में खुद रहता पर गुलशन में फूल खिलाता है ।।

दुनिया खड़ी कर्मशील मजदूर के मजबूत कंधे पर ।
नाली के कीड़े सा घिसट वह जीता और मर जाता है ।।


स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़








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