मजदूर है वह दुनिया को तरक्की की राह दिखाता है ।।
जूझता वह जीवन भर रोटी , कपड़ा , मकान के लिए ।
उसका खून - पसीना हरदम दूसरों के काम आता है ।।
बाँध देता नदियों को , निर्मित करता बड़े - बड़े पुल ।
टाट का उसका झोपड़ा पहली बारिश में ढह जाता है ।।
खोदकर धरती को वह निकाल लाता कोयला , हीरा ।
भूख , बेबसी, अभावों के अंधेरे से निकल नहीं पाता है ।।
उसके लिए नहीं हैं ये सारे सुख - साधन , सुविधाएं ।
वह हवाई जहाज , कार ,आलीशान महल बनाता है ।।
बुनता है वह रंग - बिरंगे रेशमी धागों के ताने- बाने ।
चीथड़ों में पलते बच्चे , पैबन्दों में जीवन बिताता है ।।
हाहाकार मच जायेगा दुनिया में उसके न होने पर ।
पर उसकी दयनीय दशा पर आँसू कौन बहाता है ।।
ईमानदारी उसके सीने में परिश्रम उसके माथे पर ।
थक जाता पर कभी न मेहनत से जी चुराता है ।।
मजदूर के खुरदुरे हाथों में केवल हैं कर्म की लकीरें ।
काँटों में खुद रहता पर गुलशन में फूल खिलाता है ।।
दुनिया खड़ी कर्मशील मजदूर के मजबूत कंधे पर ।
नाली के कीड़े सा घिसट वह जीता और मर जाता है ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment