समांत - आई
पदांत - है
मात्रा भार - 29
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ईश्वर ने यह दुनिया अनुपम ,अद्भुत बनाई है
पंछी , प्रकृति ,जीव जंतु , जनाकृतियों से सजाई है
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उसने चाहा तो यही था कि सब मिलकर साथ रहें
इंसान और इंसान के बीच गहरी खाई है
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चमन बनाया था जिसे सहयोग और सद्भाव से
मानव ने वहाँ झूठ ,फरेब की बस्ती बसाई है
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भस्म हुई हैं नीतियाँ , विलुप्त हो रहे हैं संस्कार
बैर ,कटुता की यह अग्नि जाने किसने जलाई है
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विपत्तियों की गर्म हवा में सहयोग की बारिश ने
इंसानियत के जीवित होने की आस जगाई है
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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