Saturday, 16 May 2020

मुक्तक

स्वर्णकार गहनों में नगीने जड़ लेता है ,
शिल्पकार पत्थरों में मूरत गढ़ लेता है ।
वाणी भी असमर्थ हो जाती है कई बार _
पीड़ा को इंसान आँखों से  पढ़ लेता है ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

दोहा -  
राग - द्वेष से परे हों , मिले स्नेह औ प्यार ।
जीवन - सरिता बहे यों , सरल ,सहज , अनिवार ।।

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