Monday, 4 May 2020

बेबस मानव

किस बात का अहंकार है
किस बात पर उछलता है
बेबस हुआ है मौत के आगे
रे मानव ! तेरा कहाँ वश चलता है ।।

ज्ञान - विज्ञान में खूब बढ़ा
तरक्की की सीढियाँ चढ़ा
चाँद के पार जाने वाले
बेदम हो धरा पर गिरता है ।

खोज ली रोगों की दवा
फिर भी प्रिय को न रोक सका
नदियाँ रोकी , बाँध बनाये
पर अब भी बाढ़ में सब बहता है ।

खत्म किये वन्य जीव ,जंगल
खड़े किए कंक्रीट के महल
कारखानों के कसैले धुँए में
अब तेरा दम क्यों घुटता है ।

प्रकृति से किया छेड़छाड़ 
जिंदगी से किया खिलवाड़ 
डरकर विषाणु महामारी से
क्यूंअब  कैद घरों में रहता है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़



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