किस बात पर उछलता है
बेबस हुआ है मौत के आगे
रे मानव ! तेरा कहाँ वश चलता है ।।
ज्ञान - विज्ञान में खूब बढ़ा
तरक्की की सीढियाँ चढ़ा
चाँद के पार जाने वाले
बेदम हो धरा पर गिरता है ।
खोज ली रोगों की दवा
फिर भी प्रिय को न रोक सका
नदियाँ रोकी , बाँध बनाये
पर अब भी बाढ़ में सब बहता है ।
खत्म किये वन्य जीव ,जंगल
खड़े किए कंक्रीट के महल
कारखानों के कसैले धुँए में
अब तेरा दम क्यों घुटता है ।
प्रकृति से किया छेड़छाड़
जिंदगी से किया खिलवाड़
डरकर विषाणु महामारी से
क्यूंअब कैद घरों में रहता है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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