समां त - अल
पदांत - है
मात्रा भार - 16
********************************************
होना हर मुश्किल को हल है
आगे एक बेहतर कल है
पाने को अपना घर - आँगन
चलता वह मीलों पैदल है
विपदा उसको तोड़ न पाए
ध्रुव तारे सा अचल अटल है
माथे से जो छलक पड़ा है
यह स्वेद नहीं गंगा जल है
सिर पर उसके आस की गठरी
सीने में पुरुषार्थ का बल है
********************************************
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment