वर्तमान परिस्थिति ऐसी है कि सब अपने घरों में महीनों से बंद हैं । मॉल और दुकानें बंद होने के कारण बाहरी विदेशी चीजें खाने को नहीं मिल रही और अभी घरों में बनी चीजें ही उपयोग में लाई जा रही हैं । रेहान जो पहले कभी बड़ी , गट्टे की सब्जी , भाजी वगैरह नहीं खाता था ;अब मजबूरी में सब खाना पड़ रहा है क्योंकि रेस्टोरेंट बन्द है । शुरुआत में उसने यह सब मुँह बनाकर खाया था लेकिन बाद में घर की सब चीजें उसे अच्छी लगने लगी थीं । कोल्ड ड्रिंक्स के बदले नींबू पानी , कच्चे आम का पना , बेल शरबत देख उसने कहा था .."वाव मॉम ये तो वन्डरफुल है " । " हाँ बेटे स्वाद के साथ सेहत भी है यहाँ इसीलिए कहती हूँ स्वदेशी अपनाओ । इसी खान - पान के कारण हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता दूसरे देशों से कहीं अधिक है ।"
पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित बेटा अपनी भारतीय संस्कृति को समझने व पसन्द करने लगा है यह सोचकर उसकी माँ रेणु बहुत खुश थी । कोरोना के बहाने युवा पीढ़ी अपनी जड़ों की ओर लौट तो रही है ,रेणु ने निश्चिंतता की सांस ली ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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