स्वाति....पतिदेव गुस्से में चिल्ला रहे थे - " तुमने मेरे कपड़े प्रेस नहीं किये ,मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है । अरे यार ! दिन भर घर में रहकर इतना भी नहीं कर पाती । मैं दस - बारह घण्टे की ड्यूटी करके घर के कामों के लिए भी समय निकालूँ । अभी धोबी की दुकान बंद है ,कुछ दिनों की परेशानी है फिर तो तुम्हें कपड़े प्रेस करने ही नहीं । " हड़बड़ाकर स्वाति उठी , तो वह स्वप्न देख रही थी , कल कपड़े प्रेस करना भूल गई यही सोचते सोई थी शायद इसलिए सपने में भी वही देख रही थी । पतिदेव के लिए टिफिन बनाकर वह रसोई से बाहर आई तो वे नहाकर अपने कपड़े प्रेस कर रहे थे । सपने की तरह नाराज नहीं हुए । स्वाति को ग्लानि महसूस हुई , यह उसका अंतर्मन ही था जो उसे पीड़ित कर रहा था । उनके ऑफिस जाते ही स्वाति ने सबसे पहले कपड़े प्रेस किये , नाराज होते तो भले नहीं करती बल्कि इसलिए कि उन्होंने कुछ नही कहा ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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