Monday, 4 May 2020

मुक्तक

खत्म न हो ऐसी कोई रात नहीं है ,
छुपा सकें ऐसी कोई बात नहीं है ।
रिश्ता तोड़ने से पहले सोचना जरा_
टूट कर जुड़े ऐसा कोई पात नहीं है ।।

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सागर की विशालता में हर बूँद का योगदान है
इस अथाह जलागार में हर प्रवाह का सम्मान है ।
आकर विविध पर्वत , प्रान्त से मिलती जलधाराएँ_
चख लो कहीं पर से जल का स्वाद एक समान है ।।
तिरोहित कर स्वयं को सब हो जाती एक समान हैं ।।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

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