याद रख भाई तुझे घर लौट कर आना है ।
जाल बिछाया है दुश्मन ने सम्भलना जरा ,
बचाना है खुद को ,उन्हें मारकर आना है ।
भूख , प्यास , नींद सभी कुछ त्याग दिया तुमने ,
रुकना नहीं थक कर , तुम्हें चलकर जाना है ।
राह रोकने आये कभी बादल निराशा के ,
चमको सूरज बनकर , तम को छलकर जाना है ।
हारना न हिम्मत ना बुझे उम्मीद का दिया ,
दीप सम जलना ,आँधी से लड़कर जाना है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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