पिंजरे में बंद तोते आपस में गुफ़्तगू कर रहे ,
क्या हो गया इंसान को जो कमरे में बंद रह रहे ।
बदला हुआ व्यवहार है , दिखा रहे कुछ प्यार है ,
कुदरत ने सिखा दिया मीठे बोल मुँह से झर रहे ।
शोर थम गया है वाहनों का ,सड़कें हो गई सूनी ,
नीर , वायु स्वच्छ हुए ,गगन में पंछी विचर रहे ।
जान रहे संस्कृति को , मान रहे विधि - विधान ,
योग , शाकाहार अपना वे एकांत मनन कर रहे ।
मान लिया उसने कि प्रकृति का किया शोषण ,
रुक गई है दौड़ साधन की , मानव अब सुधर रहे ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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