Tuesday, 19 May 2020

हिंडोला जिंदगी का

हिंडोला जिंदगी का ,
कभी ऊपर कभी नीचे ।
गिरा देती  कभी धरा पर ,
कभी हाथ पकड़  खींचे ।

चलते रहना  निरंतर ,
संघर्ष भरा यह सफर है  ।
पार करने बनो आत्मनिर्भर ,
 बड़ी लम्बी यह डगर है ।
 यादों के कारवाँ संग ,
चल आगे न देख पीछे ।

ऊँचाईयों में  उड़ना पर ,
रखना पाँव जमीं पे ।
ख्वाहिशों का यह समन्दर ,
न उतर तलहटी पे ।
बाजार ये  नुमाइशों का  ,
मकड़जाल  में अपने भींचे ।

हैं राहें घनी अंधेरी ,
अंध गह्वर लालसा का ।
भटका जाता राही ,
मंजिलें  हुई मृग - मरीचिका ।
धोखा या जादूगरी है ,
चकाचौंध इंद्रजाल सरीखे ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़












No comments:

Post a Comment