आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Friday, 31 July 2020
छत्तीसगढ़ी गीत
राखी ( लघुकथा )
Thursday, 30 July 2020
दोहे ( अहंकार )
शिक्षादान ( लघुकथा )
Wednesday, 29 July 2020
बेटी पर दोहे
मुक्तक
Monday, 27 July 2020
गीत 18
Saturday, 25 July 2020
लक्ष्य ( मनहरण घनाक्षरी )
Friday, 24 July 2020
उम्मीद (लघुकथा )
Wednesday, 22 July 2020
विधाता ( दोहे )
Tuesday, 21 July 2020
रूप घनाक्षरी
दोहे ( पावस )
रूप घनाक्षरी ( पावस )
Monday, 20 July 2020
गीत 15
गीत 13
Sunday, 19 July 2020
कुण्डलिया
अस्मत (मुक्तक )
#अस्मत पर आये कोई आंच गवारा नहीं हमको ,
झूठ जो ढक ले सांच वो प्यारा नहीं हमको ।
खेल जायेंगे जान पर बचाने अपनी इज्जत -
भूलकर भी समझना नाकारा नहीं हमको ।
गुल ही नहीं तुम्हें खार में भी खिलना होगा ,
वक्त के साथ खुद को भी बदलना होगा ।
खेल न सके कोई # अस्मत से तुम्हारी_
जरूरत पड़े तो आग में भी चलना होगा ।
परिवार
#पिता जीवन के समंदर में नाव से ,
संघर्षों के तेज धूप में वट की छांव से ।
#माँ सूखी धरती में बरसी बारिश सी ,
मौत को देख जी लेने की ख्वाहिश सी ।
#बेटा दृढ़ निश्चयी पहाड़ सा रहा अटल ,
बना परिवार का आधार दिया संबल ।
#बेटी नदियों सी पावन निश्छल बहाव ,
दो कुलों के स्वाभिमान का खूबसूरत पड़ाव ।
सूरज की रोशनी चाँदनी की शीतल फुहार ,
अपनेपन ,प्यार से समृद्ध खुशहाल # परिवार ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
मुक्तक
दिखाते सही राह देकर ज्ञान ,
मुश्किलों को करते आसान ।
ईश्वर भी उन्हें शीश नवाते _
गुरु का सबसे ऊँचा स्थान ।
सुर के बिना अधूरा तान ,
गुरु के बिना न मिलता ज्ञान ।
हो जायेगा जीवन सफल_
सदैव गुरु का कहना मान ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
मतलब की यारी
मुक्तक
जी हलकान होगे
मुक्तक ( पर्यावरण )
दुनिया ल छोड़ के ( छत्तीसगढ़ी )
ज्ञानी ( दोहे )
मुक्तक
पीरा ( छत्तीसगढ़ी गीत )
अन्नदाता तैं कर्जा के...
फंदा मा कहां फंदागे जी
बियाज उपर बियाज चढ़त हे
मूलधन ह लुकागे जी ।
सुक्खा परगे खेत खार..
बरसात हर रिसागे जी
परिया परगे बारी बखरी
साग भाजी बिसाबे जी
बनिहार घलो मिलय नहीं
खेती बारी बेचागे जी
बुता खोजे बर चलिन सहर
गांव के गली हर रितागे जी
महंगाई के नागर म
बइला सही फंदागे जी
बांचे के रददा नई दिखय
पीरा म जिनगी बंधा गे जी ।।
स्वरचित .... डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
दोहे ( दिव्यांग )
तन्हाई
मुक्तक
दोहे ( बेटी )
कुण्डलिया ( बेटी )
दोहे ( तारा )
गीत ( छत्तीसगढ़ी )
कुण्डलिया
सजल
गीत 10
मुक्तक ( विवेकानंद , छल , मजदूर , शहीद )
मुक्तक
दूर के ढोल
दोहे ( गुरु )
काश ! ( लघुकथा )
तेरी सास ने कुछ नहीं सिखाया ( आलेख )
जिंदादिली का नाम है जिंदगी
दोहे ( ज्योति )
मुक्तक
नुस्खा ( लघुकथा)
दोहे ( किसान )
मेरे लिए
गीत 14
मुक्तक ( बरसात )
मुक्तक ( दोस्त )
दोहे ( नीति )
दोहे ( मेरा देश )
दोहे
मुक्तक
मुक्तक
दोहे ( मानवता )
मुक्तक ( गिद्ध )
सफर जारी रखो
लक्ष्य ( घनाक्षरी छंद)
Saturday, 18 July 2020
मुक्तक , गीत समीक्षा ( भाव पक्ष )
साधना ही मानव को महान बनाती है ,
स्वागत गीत
Friday, 17 July 2020
पीड़ा (गीत )16
संस्कार ( लघुकथा )
Thursday, 16 July 2020
गीत 5
Tuesday, 14 July 2020
संवेदना ( लघुकथा )
सिस्टम ( लघुकथा )
Tuesday, 7 July 2020
वजूद ( लघुकथा)
Sunday, 5 July 2020
सजल
Friday, 3 July 2020
पाती पिया के नाम
सुनो...
बाबुल का आँगन छोड़कर पिया के घर आने तक न जाने कितने विचार बदली की तरह मन के आसमान में उमड़ - घुमड़ रहे थे । चौबीस वर्ष
तुम्हारे खूबसूरत साथ ने जीवन के इस सफर को भी खूबसूरत और आसान बना दिया है । मुझे वो सब मिला जिसकी मैंने आरजू की थी और वो भी मिला जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था । प्यार और खुशियों से भरपूर घर - संसार ...मेरा भरपूर ख्याल रखने वाले पति और बच्चे... मैं आज अपने जीवन से पूर्णरूपेण सन्तुष्ट हूँ... कहीं कोई असंतोष या दुविधा नहीं है । हाँ.. तुम्हें शायद यह गलतफहमी है कि मैं सन्तुष्ट नहीं । मैं बहुत शिकायतें करती रहती हूँ पर वह ऊपरी ही हैं...अंतर्मन की गहराई में बैठने वाली नहीं हैं । वो शिकायतें करके मैं भूल भी जाती हूँ उन्हें तुम भी दिल में मत रखा करो । अक्सर कई बातों के लिए तुम मुझे चिढ़ाते रहते हो...और मैं चिढ़ जाया करती हूँ , छोटी - छोटी बातों पर । मैं चाहूं तो अपनी यह आदत सुधार सकती हूँ... पर जान - बूझकर नहीं सुधारती क्योंकि मुझे अच्छा लगता है तुम्हारा चिढाना...तुमसे अटेंशन पाना । मैं चिढ़ना बंद कर दूँगी तो तुम चिढाना बंद कर दोगे..न कोई छेड़छाड़ होगी और न रूठना - मनाना । बिना रूठे - मनाये दुनिया बेरंग लगने लगेगी न ! गृहस्थ जीवन को चटपटा और मजेदार बनाने के लिए यह सब जरूरी है है ना । तुम क्या सोचते हो बताना ।
तुम्हारी ही ❤️
वक्त
सूरज संग उगता व ढलता रहा ,
जिंदगी के हर दौर में ,
वक्त साथ चलता रहा ।
तन्हाई कभी महफ़िल ,
दर - बदर भटकता रहा ।
बुरे - भले वक्त में ,
इंसान रंग बदलता रहा ।
अपने और पराये की ,
पहचान कराता रहा ।
सही और गलत का ,
फर्क समझाता रहा ।
जिंदगी की राह में ,
साथी बदलता रहा ।
रुक गया कारवां ,
वक्त साथ चलता रहा ।
दीक्षा
ग़ज़ल
समय की रेत
ग़ज़ल
गजल
ग़ज़ल
कविता
भोर ( गीत 7 )
A chat story
स्वाभिमान ( लघुकथा )
नेह की डोर
मेरी अमरकंटक यात्रा ( संस्मरण )
कुमायूं डायरी
दुर्ग से 31 मई को सुबह सात बजे हम लोग दुर्ग - हजरत निजामुद्दीन हमसफ़र एक्सप्रेस में बैठे और 1 जून सुबह 4.30 बजे हजरत निजामुद्दीन स्टेशन में उतरे । हल्दवानी के लिए हमारी ट्रेन नई दिल्ली स्टेशन से थी तो तुरंत ही हमें टैक्सी के द्वारा वहाँ जाना पड़ा । सुबह साढ़े पाँच बजे ही दिल्ली के ट्रैफिक जाम का सामना स्टेशन पर करना पड़ा और स्टेशन से कुछ दूर पहले ही टैक्सी छोड़कर अपना सामान लेकर हम पैदल ही चल पड़े ।नई दिल्ली से सुबह छः बजे हम शताब्दी एक्सप्रेस में हल्दवानी के लिए निकल पड़े । ट्रेन में नाश्ता, चाय ,कोल्ड ड्रिंक्स वगैरह के द्वारा शानदार मेहमानवाजी की गई । सुबह साढ़े दस बजे हम लाल कुंआ स्टेशन में उतरे । वहाँ हमारे परिचित गिरीश जी हमें लेने आये थे । उनके परिवार के साथ बिताया वह एक दिन उनकी मेहमानवाजी के नाम रहा । उन्होंने बहुत ही खुशी के साथ हमारा स्वागत सत्कार किया । हमारी ननद गीता ने एक दिन में ही पहाड़ की सारी खूबियों से हमारा परिचय करा दिया । वहाँ के फल खुबानी , आड़ू , आम ,वहाँ की स्पेशल दाल व खाना का आनंद लिया हमने । पहाड़ों का सौंदर्य दर्शन करने से पहले हमने वहाँ के लोगों के खूबसूरत दिलों का सौंदर्य दर्शन किया जो अपनेपन और प्यार से लबरेज़ था । वो ही नहीं उनका पूरा परिवार हमसे बड़ी प्रसन्नता से मिला मानों हम कब से परिचित हों । उन चेहरों में कोई अजनबियत नहीं थी बल्कि मिलने की ललक थी , ढेर सारा लगाव था । शाम को हम गीता की बड़ी बहन उमा दीदी के घर गये जहाँ से हम खाना खाकर स्नेहाभिभूत होकर वापस लौटे । गिरीश जी ने न सिर्फ हमारे लिए टैक्सी की व्यवस्था कर दी थी , बल्कि पूरी यात्रा की योजना बना दी थी कि हमें क्या क्या देखना है , किस रूट से जाना है इत्यादि क्योंकि वे वहीं के रहने वाले हैं सारे महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों की सूची उन्होंने हमें दे दी थी । चूँकि यह बहुत भीड़ वाला सीजन था तो उन्होंने सभी जगह होटल भी बुक कर दिया था । इससे बड़ी सुविधा और क्या चाहिए, हम निश्चिंत होकर यात्रा पर निकल पड़े । दो जून की सुबह गीता के हाथों की बनी स्वादिष्ट पूरी सब्जी खाकर हम हल्दवानी से पहाड़ों के लिए निकले और हमारी रोमांचक यात्रा प्रारंभ हुई ।
हल्दवानी से कुछ दूर आगे बढ़ने के साथ ही पहाड़ों के दर्शन प्रारंभ हो गये.. हरे - भरे पेड़ों युक्त ऊँचे - ऊँचे पहाड़ मानो आसमान से बातें कर रहे हों । सर्पिलाकार सड़कों और उनके कई खतरनाक मोड़ को देख कर हम सांस रोक लेते थे कि अब क्या होगा लेकिन ड्राइवर किसी कुशल मदारी की तरह आसानी से उन स्थितियों से गाड़ी बाहर निकाल ले जाते थे । प्रकृति की खूबसूरती यहाँ वहाँ छिटकी पड़ी थी जो आँखों को बाँध लेती थी । एक तरफ ऊँचे पहाड़ तो दूसरी ओर गहरी खाई ...जिंदगी के उतार - चढ़ाव का सच बयान करते नजर आ रहे थे । पहाड़ों के साथ चलती चौड़ी पहाड़ी नदी दृश्यों को मनोरम बना रही थी । स्थानीय ड्राइवर के द्वारा अनेक पहाड़ी फलों व पेड़ों के बारे में हमें ढेर सारी जानकारी मिली । काफल तोड़ कर खाये जो छोटे बेर की तरह दिखते थे पर रसदार थे । नासपाती के पेड़ की हरेक शाखाओं को छोटे - छोटे फलों से लदा हुआ देखना सुन्दर अनुभव रहा..काश ! ये थोड़े और बड़े होते तो अपने हाथों से तोड़कर इन्हें खाना और भी मजेदार होता । हरे - हरे आड़ू के फल छोटे पेड़ों पर फले हुए थे । तरह - तरह के पहाड़ी फूल पहाड़ों के सौंदर्य में वृद्धि कर रहे थे , साथ ही समीर की शीतलता चेहरे के साथ मन को भी स्निग्ध किये जा रही थी । खूबसूरत नजारों ने आँखों को बाँध सा लिया था और हम मंत्रमुग्ध हो यहाँ- वहाँ नजरें फिराते रहे ।
रानीखेत के रास्ते में पड़ा भवाली जहाँ अंग्रेजों के जमाने का बना हुआ एक T. B. Sanitorium मिला
क्योंकि यहाँ चीड़ों के घने जंगल हैं । कहा जाता है कि चीड़ के फूलों की खुशबू से टी. बी. के मरीज अपने आप ठीक हो जाते थे । मुझे लगता है आधी बीमारी तो यहाँ की खूबसूरती व
मनभावन दृश्य को देखकर ही दूर हो जाती होगी ।
चीड़ के ऊँचे पेड़ मानो आसमान में झाँकने का प्रयास कर रहे हों , उनके साथ बादल भी लुकाछिपी का खेल खेल रहे थे । कभी बगल में , कभी ऊपर तो कभी उनसे गलबहियाँ लगते हुए ...घुमावदार रास्तों , घाटियों के बीच कैंचीधाम मंदिर पड़ा जो नीमकरौरी बाबा का समाधिस्थल है । नदी पर बने पुल के उस पार यह स्थल अत्यंत आकर्षक व मनोरम है और लोगों की आस्था का प्रतीक है । उनकी मूर्ति जीवंत सी लग रही थी । रास्ते में नदी पर बने लौह ब्रिज पर जाकर नदी व पहाड़ का विहंगम दृश्य देखनाा अद्भुत था । यहाँ पर एडवेंचर के प्रेेमी
के लिये नदी के आर - पार तार बाँध कर उन्हें स्लाइड कराया जा रहा था ।